उच्चतर माध्यमिक स्तर की कन्या शाला एवं सह-शिक्षा में अध्ययनरत् छात्राओं की सामाजिक समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन

 

डाॅ. शर्मिला1, डाॅ. अब्दुल सत्तार2, श्रीमती सविता सालोमन3

1सहायक प्राध्यपिका, कंिलंगा विष्वविद्यालय, नया रायपुर.

2विभागाध्यक्ष, कमला नेहरू महाविद्यालय, कोरबा.

3सहायक प्राध्यपिका, प्रगति महाविद्यालय, रायपुर

*Corresponding Author E-mail: savitasaloman@gmail.com

 

ABSTRACT:

शिक्षा मानव के विकास की कुन्जी है। शिक्षा जीवनपर्यन्त चलने वाली अनवरत क्रिया है बालक-बालिका अपने वातावरण में प्रत्येक समय कुछ कुछ सीखता ही रहता है। तथा दूसरों को सिखाता रहता है। प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे से सीखता रहता है यह सीखने सिखाने की प्रक्रिया ही शिक्षा है। शिक्षा मनुष्य के अन्दर छिपी शक्तियों का समुचित विकास करना है। समाज का सबसे आधारभूत लक्षण वैयक्तिक विभिन्नता है, क्योंकि कोई दोे व्यक्ति पूर्णरूप से समान नहीं होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का शारीरिक मानसिक और बौद्धिक विकास अपने ढंग से ही होता है। प्रत्येक व्यक्ति की रूचियों एवं क्षमताओं में विभिन्नता होती है। यही समाज की मूल अवधारणा है और यही उसका मूल आधार है।

 

KEYWORDS: उच्चतर माध्यमिक, कन्या शाला, छात्रा, समायोजन, तुलनात्मक अध्ययन

 

प्रस्तावना:-

बालक-बालिका अपनी चारों ओर की वातावराण से प्रभावित होता है, तथा सीखते जाता है। अर्थात् बालक बालिका का समाजिकरण निरंतर होते जाता है।बालक बालिका एक सामाजिक प्राणी है इसलिए उसे उन व्यवहारों और उचित प्रक्रियाओं को सीखना पड़ता है। यह सफल सामाजिक जीवन के लिए आवश्यक है। इसमें सबसे अहम भूमिका विद्यालय का वातावरण होता है। बालक विद्यालय बालिका विद्यालय तथा सह शिक्ष विद्यालय में अध्ययनरत् छात्राओं की सोच तथा सामाजिक दृष्टिकोण अलग-अलग रहता हैं वे सामज के नियम शिक्षा चरित्र तथा मानव के आन्तरिक तथा बा्रहय गुणों को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखता है। इस प्रकार हम कह सकते है कि विद्यालयीन वातावरण का छात्राओं के दृष्टिकोण को अलग अलग विद्यालय में पढ़ने वाले छात्राओं के दृष्टिकोण अलग अलग होते है।

 

कन्या शाला:-

बालिका शिक्षा की अवधरणा प्राचीन काल से ही चली रही है। विभिन्न कार्यक्रमों मे इसकी अवधारणा तथा विकास का विस्तृत अध्ययन पूर्व अध्यायों में प्रस्तुत किया जा चुका है। भारत में वैदिक कालीन तथा उत्तर वैदिक कालीन में जैन तथा बौद्ध कालीन शिक्षाओं का अध्ययन किया जाता है। प्राचीन कालीन भारत में बालिका शिक्षा को महत्वपूर्ण माना जाता था प्राचीन कालीन भारत की बालिका शिक्षा विषयी अवधारणा अत्यन्त समृद्ध तथा उदार थी। मध्यकाल जिसे सल्तनत काल के नाम से तथा मुस्लिम काल के नाम से भी जाना जाता है। इस काल में स्त्री शिक्षा की अवधारणा कमजोर हुई जिससे स्त्री शिक्षा का हा्रस हुआ इस काल में बालिकाओं को प्राथमिक शिक्षा मकतबों में दी जाती थीं और उच्च शिक्षा के केन्द्र मदरसे थे।

 

ब्रिटिश काल में व्यापार करने के लिए डच, डेन, पुर्तगाली तथा फ्रांसीसी इत्यादि आये, जिसमें अंग्रेजों को सफलता प्राप्त हुई और धीरे-धीरे मुगलों के हाथ से सत्ता उनके हाथों मे गयी, जिससे स्त्री शिक्षा के लिए प्रयास किया गया। हण्टर, हर्टींग, बुड के द्योषणा पत्र आदि के द्वारा बालिका शिक्षा के लिए प्रयास किये गये। आधुनिक काल अर्थात् स्वतन्त्रता के पश्चात्् भारत मे बाललिकाओ की शिक्षा के लिये योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया गया। जिसके अन्तर्गत पंचवर्षीय योजनाओ के द्वारा स्त्रियों की शिक्षा के लिए प्रयास किये गये।

 

कन्या शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्व:- बालिकाओं के विद्यालयीकरण की भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में क्या आवश्कयता तथा महत्व है, इसको निम्न बिन्दुओं केे अन्तर्गत देखा सकते हैं:-

1.    बालिका शिक्षा की लोकतंत्र की स्थापना का आवश्यकता तथा महत्व अत्यधिक है।

2.    बालिकाओं का विद्यालयीकरण अनिवार्य तथा सार्वभौमिक शिक्षा के लिए अनिवार्य है।

3.    बालिकाओं का विद्यालयीकरण देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।

4.    सामाजिक गतिशीलता तथा परिर्वतन के लिए बालिकाओं की शिक्षा आत्यावश्यक है।

5.    बालिका शिक्षा की आवश्यकता राष्ट्रीय एकता के लिए है।

6.    बालिका शिक्षा व्यावसायिक उन्नति के लिए आवश्यक है।

7.    बालिका विद्यालयीकरण की आवश्ययकता एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए आवश्यक है।

8.    बालिका विद्यालयीकरण लैगिक विभेदों की समाप्ति हेतु उपयोगी है।

9.    अशिक्षा की समाप्ति के लिये बालिका विद्यालयीकरण महत्वपूर्ण है।

 

कन्या शिक्षा की समस्याएं:-

बालिका शिक्षा की कई समस्याएं तथा असामानताएं और अवरोध रहे हैं। स्त्री पुरूष ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में भी बालिका शिक्षा में असमानता तथा अवरोधक तथ्यों की असमानता व्याप्त है शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर बालिका शिक्षा की समस्याएं भी अलग अलग हैं जिनमें कुछ समस्याएं और अवरोध है।

1.    असमानता

2.    जगरूकता का अभाव एंव शिक्षा

3.    सामाजिक कुरीतियों एंव दृटिष्कोण

4.    संसाधनों का अभाव

5.    आर्थिक कारक

6.    घरेलू कार्यों में संलग्नता

7.    विद्यालयों का दूर होना

8.    असुरक्षात्मक वातावरण

9.    दोषपूर्ण पाठ्यक्रम

10.   बालिकाओं हेतु पृथक विद्यालयों तथा शिक्षिकाओं की कमी।

 

कन्या शिक्षा हेतु समाधान:-

बालिका शिक्षा के क्षेत्र में अनेक समस्याएं व्याप्त है जिनको दूर करना अति आवश्यक है। बालिका शिक्षा से जुड़ी समस्याओं के समाधान को निम्नांकित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:-

1.    शिक्षा के महत्व से अवगत करना तथा उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित करना।

2.    योग्य तथा प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति करना।

3.    महिला शिक्षिकाओं की नियुक्ति करना।

4.    बालिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका तथा कार्योें से अवगत करना।

5.    बालिकाओं हेतु पृथक विद्यालयों की समुचित व्यवस्था करना।

6.    बालिकाओं की व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था करना।

7.    सामाजिक सुधार के लिए कार्यक्रम चलाना।

 

सह शिक्षा का अर्थ:-

सह शिक्षा से तात्पर्य ऐसी शिक्षा से है जिसमें बालक और बालिकाएं एक साथ एक ही विद्यालय में पढ़ते हैं तथा एक साथ एक समान पाठयक्रम पूरा करते है। जहां छात्र-छात्राओं को एक ही शिक्षण व्यवस्था तथा प्रशासन में शिक्षा ग्रहण करनी होती है। यह शिक्षा-व्यवस्था आधुनिक भारत में नवीन नहीं है। वैदिक काल में गुरू आश्रम व्यवस्था के अन्तर्गत गुरू कन्या के साथ अन्य विद्यार्थी भी शिक्षा ग्रहण किया करते थे। परन्तु उस समय गुरू के प्रति श्रद्धा, ब्रहा्रचर्य पालन, व्रत और संयम उन्हें भाई बहन के पवित्र सम्बंधों में ही बांधकर रखता था।

 

समायोजन का अर्थ:-

समायोजन की जीवन है। मनोविज्ञान का विशेष उद्देश्य है व्यक्ति को जीवन मे सामयोजित करना। किसी भी नये वातावरण में व्यक्ति को समायोजित होना पड़ता है। कभीकभी हमें समायोजन करने मे कुछ कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। जो व्यक्ति अपने ब्राहय तथा आन्तरिक वातावरण के साथ सामयोजन करने मे सामर्थ होते हैं वे सफल होते है। समायोजन शब्द का अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द एडजस्टमेण्ट है। इसकी व्युत्पत्ति जीव विज्ञान के एडप्शन ;।कवचजपवदद्ध शब्द से हुई हैं नवजानत शिशु जन्म लेने के पश्चात् यदि वातावरण से समायोजित हो जाता है तो वह जीवित रहता है अन्यथा नहीं। समायोजन व्यक्ति की जीवन है। मनोविज्ञान का विशेष उद्देश्य है व्यक्ति को जीवन में हर क्षेत्र में समायोजित करना। दैनिक जीवन में हम सभी प्रायः समायोजन करते हैं। यदि कार में पांच व्यक्तियों के लिए स्थान है और आठ व्यक्ति सफर कर रहें हैं तो उन्हें कार में सामायोजित होना पड़ता है।

 

समायोजन की परिभाषा:-

मैस्लो तथा मिटिलमैन के अनुसार:-‘‘समायोजन व्यक्ति की वह विशेषता है जिसके अनुसार वह अपने जीवन की मुख्य समस्याओं को समझता है उनसे प्रतिक्रिया करता है एवं उनका समाधान करता है।’’

लारेन्स एफ. शैकर के नुसार:-‘‘समायोजन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जीवित प्राणी अपनी आवश्यकताओं और इन आवश्यकताआंे की पुष्टि को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों में एक संतुलन बनाये रखता है।’’

समायोजन को प्रभावित करने वाले काराक:-

1.    सामाजिक आर्थिक स्तर

2.    अभिरूचि

3.    शहरी एवं ग्रामीण परिवेश

4.    निराशा, चिंता, तनाव

5.    कुण्ठा

6.    शैक्षिक उपलब्धि

7.    लिंग

8.    विद्यालय का वातावरण

9.    मानसिक योग्यता

10.   पारिवारिक वातावरण

11.   बुद्धि

12.   स्वास्थ्य

13.   आकांक्षा

 

अध्ययन का महत्व:-

छात्राओं में सामाजिक समायोजन की प्रवृत्ति समाज राष्ट्र की उन्नति में योगदान देता है। षिक्षा सामाजिक परिवर्तन का सषक्त साधन है यह मानव जवन में वैचारिक क्रांति की मषाल जलाती है। मनुष्य के उन गुणों को उजागर करती है जिससे उसका तथा समाज का कल्याण हो। आज की षिक्षा के लिए यह आवष्यक है कि वह बालक-बालिका किस विद्यालय अर्थात् बालक विद्यालय या बालिका विद्यालय या फिर सह-षिक्षा विद्यालय में अध्ययनरत् है। इससे ही उनकी सामाजिक समायोजन की दृष्टिकोण कस पता लगाया जा सकता है और फिर इनमें तुलना किया जा सकता है,कि किस विद्यालय में पढ़ने वाले छात्राओं की सामाजिक समायोजन की प्रवृत्ति कैसी है। अतः सामाजिक समायोजन अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग होती है, इसी के आधार पर अलग विद्यालयों में पढ़ने वाले बालक-बालिकाओं की सामाजिक समायोजन भी अलग-अलग होती है। मनुष्य के सभी कार्य जन्मजात तथा अर्जित होती है ये दोनों प्रधान क्रियात्मक मनोवृत्तियों से संचालित होती है। अर्जित प्रवृत्तियां घर, परिवार, समाज, विद्यालयीन वातावरण आदि क्षेत्रों से अर्जित कर उसे व्यवहार में लाते है इसी से उनके प्रवृत्तियों को देखा जा सकता है। अतः इन सबसे यह स्पष्ट होता है,कि बालक दोनों के लिए सामाजिक समायोजन की प्रवृत्ति को देखने के लिए तुलनात्मक अध्ययन बालिका विद्यालय तथा सह-षिक्षा विद्यालय में अध्ययनरत् छात्राओं का किया गया है।

 

संबंधित शोध साहित्य:-

शोध विषय से संबंधित साहित्य की जानकारी प्राप्त करने के लिए पत्र-पत्रिकाओं पुस्तकों का प्रकाषित तथा अप्रकाषित शोध प्रबन्धों तथा अभिलेखों का अध्ययन किया गया हैं।

 

भारत में किए गए शोध कार्य:-

चैधरी, होम (1980) ने महाविद्यालय की शैक्षिक उपलब्धि पर विश्लेषित अध्ययन किया।

 

निष्कर्ष:-

स्वप्रत्यय बालकों की शैक्षिक उपलब्ध का मुख्य अंग है।बालकों एवं बालिकाओं के मध्य स्वप्रत्यय चर में कोई अंतर नहीं पाया गया। शैक्षिक उपलब्ध में सामाजिक आर्थिक स्तर भी सार्थक भूमिका निभाते है।

 

देसाई (1989) ने प्रेरणा उपलब्ध और कक्षा वातावरण पर एक अध्ययन किया। जिसमें निम्न निष्कर्ष प्राप्त किया।

 

निष्कर्ष:-

कक्षा का वातावरण छात्र की प्रेरणा और उसकी उपलबिध से धनात्मक संबंध रखता है। बालक की शैक्षिक प्रेरणा बालक-बालिक की शैक्षिक उपलब्ध से धनात्मक संबंध रखती है।सामाजिक आर्थिक स्तर बालक के कक्ष वातावरण अथवा छात्रों की प्रेरणा से कोई संबंध नहीं है।छात्रों के कक्षा वातावरण में छात्राओं की अपेक्षा स्तर ऊंचा पाया जाता है।

 

कुमार, एम. वी एवं पाटील, बी. (2006) ने अपने शोध - ‘‘एस्टडी आॅफ इमोशनल इंटेलीजेंस आॅफ एमंग स्टुडेन्ट टीचर्स इन रिलेशन टू सैकस फैकल्टी एंड एककेडमिक एचीवमेंट’’

 

 

निष्कर्ष:-

छात्र छात्रा, शिक्षक-शिक्षाकाओं की भावात्मक बुद्धि में कोई सार्थक अंतर नही पाया गया। शैक्षिक उपलब्धि भावानत्मक बुद्धि के बीच सार्थक अंतर नहीं पाया गया।

 

कुलकर्णी, उषा अनुराधा (2014) ने ‘‘कम्प्रेरिटिव स्टडी आॅफ परसानालिटिस आॅफ एडुसोलेन्ट गलर्स स्टडीइग इन सेपरेट सोकेन्डरी स्कूल फार गलर्स एण्ड गल्र्स स्टडीइग इन को एजुकेशन इन संगणी डिस्ट्रक्ट’’

 

निष्कर्ष:-

सह शिक्षा में पढ़ रहे छात्राओं में समान लिंग के सार्थियों से खुले तौर पर बोलते है तथा पूर्ण रूप से कौशलों का विकास करते है। इस शोध मे यह भी कहा गया है कि एकल शिक्षा सह शिक्षा से अच्छा हो जरूरी नहीं है।

 

सुबम्नयम, के (2007) ‘‘सोशल इमोशनल एण्ड एजुकेशलन एडजस्टमेन्ट प्रोब्लम आॅफ 10 क्लास स्टुडेन्ट इन रिलेषन टू देयर एचीुवमेन्ट’’

 

निष्कर्ष:-

स्कूल का प्रकार अर्थात् एकललिंग और सह-शिक्षा में अध्ययनरत् छात्राओं की समग्र समायोजन संबंधी समस्या एवं प्रभाव। स्कूल प्रबंध के प्रकार से छात्राओं की सामाजिक सामायोजन पर प्रभाव। लिंग संबंधी काकर सामाजिक समायोजन पर भावात्मक और शैक्षिक समायोजन संबंधी प्रभाव डालता है।

 

चक्रवर्ती, एस (1999) इन्होने भारत के छात्रों के बीच समाज के प्रति अभिवृत्ति का अध्ययन किया।

 

निष्कर्ष:-

समाज की प्रकृति को समझने में छात्रों तथा अध्यापकों के संबंध निर्धारित करना।समाज की प्रकृति, रीति-रिवाजो के समझने में छात्रों की अभिवृत्ति कितनी मिलती है।

 

वाजपेयी, एस. के. (1989-90) ने हाईस्कूल में अध्ययनरत् छात्र-छात्राओं की सामजिक स्तर के सापेक्ष बुद्धि एवं अभिरूचि का अध्ययन।

 

निष्कर्ष:-

हाई स्कूल में अध्ययनरत् छात्र-छात्राओं के माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों की अपेक्षा अधिक आत्मविश्वास पाया गया जिनमे सामान्य मानसिक योग्यता अधिक थी।हाई स्कूल में अध्ययनरत् छात्र-छात्राओं में अधिगम आत्मविश्वास माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों की तुलना में अधिक पाया गया है।

 

सारास्वत, आनंद कुमार (1989-90) ने हाई स्कूल स्तर पर अध्ययनरत् ग्रामीण बालिकाओं की शैक्षिक अभिरूचि पर सामाजिक आर्थिक स्थितियों के प्रभाव का समीक्षात्मक अध्ययन।

 

निष्कर्ष:-

सामाजिक स्तर पर शैक्षिक अभिरूचि पर पड़ने वाले प्रभाव से स्पष्ट होता है कि दोनों के बीच निम्न धानात्मक सह-संबंध है। ग्रामीण बालिकाओं की सामाजिक आर्थिक स्थितियों का उनकी शैक्षिक अभिरूचि पर कम प्रभाव पड़ता है।

 

विदेश में किए गए शोध कार्य:-

राजा, एम. वी. आर. और ख्यावजा, टी. (2006) ने स्कूली बच्चों में समायोजन समस्या के बारे में शोध किया है।

 

निष्कर्ष:-

इसका निष्कर्ष है कि समायोजन पर आयु का प्रभाव पड़ता है। तथा इसके साथ माता-पिता के शिक्षा का भी प्रभाव पड़ता है। समायोजन का भी प्रभाव पड़ता है।

 

ब्राउन एवं हींगस, एम. आर. (2004) ने अपने शोध स्कूल एनवायमेंट्स एलाइट सम स्टूडेन्ट्स’’ में स्पष्ट किया कि -

 

निष्कर्ष:-

जो विद्यार्थी अपने आप में असमर्थ होते है उनमें अत्याधिक मात्रा में समाज द्वारा त्याग देने पृथकवादिता की भावना पाई जाती है। असमर्थ विद्यार्थी में आगे जाकर विद्यालय को छोड़ने की समूह की बढ़ती गतिविधयों, कमजोर विद्यालय, सामूहिक संबंध कमजोर, विद्यालय विद्यार्थी संबंध कमजोर अध्यापक विद्यार्थी संबंध के अलगाव के रूप में सामने आते है।

 

टेरेस, बैरी क्रिस्टीन (1994) ने बैरी क्रिस्टीन टेरेस ने अधिगम निर्योग्य बच्चों के सामाजिक परिपक्वता और शैक्षिक परिपक्वता का अध्ययन किया।

 

निष्कर्ष:-

प्रस्तुत अध्यययन में पाया गया कि सामाजिक परिपक्वता और शैक्षिक परिपक्वता में सार्थक संबंध है।

 

दरजा, कोबुल एवं जेनेक, नुसेक (2003) ने 16-17 वर्ष के बच्चों पर शैक्षिक उपलब्धि एवं उसका समाज से संबंधों को जानने का प्रयास किया।

 

निष्कर्ष:-

दो तत्वों का विश्लेषण और विभेदकारी विश्लेषण का परिणाम दर्शाता है कि शौक्षिक उपलब्धि और स्वधारणा की विभिन्न अनुक्रमिकाओं के बीच महत्वपूर्ण सह संबंध है।

 

स्पुता, चेरिल एल. पाॅलसन एवं सेरान . (1995) इनके द्वारा बालक बालिकाओं की उपलब्धि समायोजन पर परिवार के आकार तथा पालकों के व्यवहार के प्रभाव का अध्ययन किया गया।

 

निष्कर्ष:-

उन्होंने यह निष्कर्ष प्राप्त किया कि छात्र-छात्राओं पर परिवार के आकार आर्थिक स्थिति का तथा बालको के सहयोग का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

अध्ययन का उद्देश्य:-‘‘उच्चतर माध्यमिक स्तर की कन्या शाला एवं सह शिक्षा में अध्ययनरत् छात्राओं की सामाजिक समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन’’ करने के लिए उद्देश्य निम्न है:-

1ण्   उच्चतर माध्यमिक स्तर की बालिका विद्यालय में अध्ययनरत बालिकाओं की सामाजिक समायोजन का अध्ययन करना।

2ण्   उच्चतर माध्यमिक स्तर की सह-शिक्षा विद्यालय में अध्ययनरत् बालक-बालिकाओं की सामाजिक समायोजन का अध्ययन करना।

3ण्   बालिका विद्यालय सह शिक्षा विद्यालय में अध्ययनरत् छात्राओं की सामाजिक समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन करना।

अध्ययन की परिकल्पनाएँ:- अध्ययन के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित परिकल्पनाओं का निर्माण किया गया है:-

1.    शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अशासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्ययनरत छात्राओं में सामाजिक समायोजन में कोई सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा।

2.    शासकीय उच्चतर माध्यमिक सह-शिक्षा विद्यालय अशासकीय उच्चतर माध्यमिक सह-शिक्षा विद्यालय में अध्ययनरत् छात्राओं में सामाजिक समायोजन में कोई सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा।

3.    अशासकीय उच्चतर माध्यमिक कन्या विद्यालय अशासकीय उच्चतर माध्यमिक सह-शिक्षा विद्यालय में अध्ययनरत् छात्राओं की सामाजिक समायोजन में सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा।

 

अध्ययन का परिसीमन:-

प्रस्तुत शोध में शोधकर्ती ने परिसीमा का निर्धारण इस प्रकार किया है -

1.    प्रस्तुत शोध के लिए रायपुर जिले का चयन किया गया है।

2.    प्रस्तुत शोध के लिए रायपुर जिले के अंतर्गत रायपुर षहर का चयन किया गया है।

3.    प्रस्तुत शोध के लिए रायपुर षहर के अंतर्गत 12 विद्यालयों का चयन किया गया है।

4.    प्रस्तुत शोध के लिए रायपुर षहर के 6 शासकीय स्कूल 6 निजी स्कूल शामिल है।

5.    प्रत्येक विद्यालय से 10-10 छात्राओं में से कुल 120 छात्राओं चयन किया गया है।

 

शोध विधि:-

शोध कार्य के लिए शोध की सर्वेक्षण विधि का चयन किया है।

 

न्यादर्श:-

प्रस्तुत शोध मे शोधकर्ता द्वारा प्रमाणित परीक्षण का प्रयोग किया गया है,जिससे केवल परिकल्पनाओं के जांच के लिये न्यादर्श की आवश्यकता है। इस अध्ययन मे प्रसम्भाव्यता न्यादर्श न्यादर्श विधि का प्रयोग किया गया है। समष्टि सीमित या निश्चित अथवा असीमित हो सकती है। एक सीमित समष्टि में अध्ययनरत पदार्थाें या निरीक्षणों की संख्या गणनीय होती है। इसमें इकाईयों की गणना की जा सकती है। प्रस्तुत शोध समस्याा ‘‘उच्चतर माध्यमिक स्तर की कन्या शाला एवं सह शिक्षा में अध्ययनरत् छात्राओं की सामाजिक समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन’’ करने के लिए न्यादर्श के रूप में 120 छात्राओं को लिया है। न्यादर्श के अंतर्गत उच्चतर माध्यमिक स्तर की कन्या शाला एवं सह शिक्षा में अध्ययनरत् छात्राओं की संख्या को लिया गया है -

 

सारणी क्रमांक 1.1

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dqy ;ksx

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30

 60

 

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60

 

60

 

120

 

समस्या का चर:-

स्वतंत्र चर:- उच्चतर माध्यमिक की कन्या शाला एवं सह-शिक्षा में अध्ययनरत् छात्रायें।

 

आश्रित चर:- सामाजिक समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन।

 

उपकरण:-

प्रस्तुत शोध समस्या ‘‘उच्चतर माध्यमिक की कन्या शाला एवं सह-शिक्षा में अध्ययनरत् छात्राओं की सामाजिक समायोजन का तुलनात्मक अध्ययन’’ के समाधान हेतु निम्न शोध उपकरण का प्रयोग किया गया है। सामाजिक समायोजन मापन हेतु डाॅ. आर के. ओझा त्मजपतमक भ्मंक क्मचंतजउमदज िच्ेलअबीवसवहल ज्ञ..ज्ञ. ब्वससमहम डवतंकंइंक द्वारा बेल्स एडजस्टमेट इवेन्ट्र पत्रक का प्रयोग किया गया है। जिसमे 60 शासकीय 60 निजी विद्यालयों के छात्राओं पर प्रयोग किया गया।

 

सांख्यिकीय विश्लेषण:-

प्रस्तुत अध्ययन मे परिकल्पनाओं के परीक्षण एवं निष्कर्ष प्राप्ति हेतु क्रातिक अनुपात का प्रयोग किया गया है।

 

क्रांतिक अनुपात:-

इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के समूहों के मध्यमानों के अंतर की सार्थकता ज्ञात करने के लिए किया जाता है। गणितीय विश्लेषण हेतु निम्न सांख्यिकीय सूत्र का प्रयोग किया गया।

1-             e/;eku

2-             izekf.kd fopyu

 

परिकल्पना का प्रमाणीकरण एवं परिणाम:-

परिकल्पना भ्1 - ‘‘शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अशासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्ययनरत छात्राओं में सामाजिक समायोजन में कोई सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा।’’

 

सारणी क्रमांक 1.1

Nk=k;sa

la[;k

ek/;

izeki fopyu

CR ewY;

lkFkZd@

lkFkZd ugha

'kkl- d- mPprj ek/;fed fo|ky;

30

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3-94

0-50

-05 Lrj ij lkFkZd ugha

v'kkl- d- mPprj ek/;fed fo|ky;

30

54-36

3-78

df = 58

 

व्याख्या:-

उच्चतर माध्यमिक विद्यालय स्तर की शासकीय कन्या शाला में 30 अशासकीय कन्या शाला में 30 छात्राओं का परीक्षण किया जिसमें शासकीय कन्या शाला के छात्राओं का सामाजिक समायोजन का माध्य 54.86 प्रमाप विचलन 3.94 प्राप्त हुआ। तथा अशासकीय कन्या शाला में अध्ययनरत् छात्राओं का सामाजिक समायोजन का माध्य 54.36 प्रमाप विचलन 54.36 है। शासकीय एव ंअशासकीय कन्या उच्चतर विद्यालय की छात्राओं के सामाजिक समायोजन के माध्यों में अंतर है। माध्यों के इस अंतर की सार्थकता हेतु ब्त् मूल्य की गणना की गई जो .50 प्राप्त हुआ 58 िके लिए 0.05 स्तर पर ब्त् की सारणी मूल्य 2.00 है जो क्रांतिक अनुपात के गणना मूल्य 0.05 से अधिक है। इस प्रकार दोनों विद्यालयों के सामाजिक समायोजन के प्राप्तांकों के माध्यों में अंतर सार्थक नहीं है। अतः परिकल्पना भ्1 ‘‘शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अशासकीय कन्या उच्चतर विद्यालय में अध्ययनरत छात्राओं में सामाजिक समायोजन में कोई सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा।’’ स्वीकृत होती है।

 

परिकल्पना भ्2 - शासकीय उच्चतर माध्यमिक सह-शिक्षा विद्यालय अशासकीय उच्चतर माध्यमिक सह-शिक्षा विद्यालय में अध्ययनरत् छात्राओं में सामाजिक समायोजन में कोई सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा।

 

सारणी क्रमांक 1.2

Nk=k;sa

la[;k

ek/;

izeki fopyu

CR ewY;

lkFkZd@

lkFkZd ugha

'kkl- mPprj ek/;fed fo|ky; lg&f'k{kk

30

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4-50

0-04

-05 Lrj ij lkFkZd ugha

v'kkl-mPprj ek/;fed fo|ky; lg&f'k{kk

30

51-13

4-27

df = 58

 

Oयाख्या:-

शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सह-शिक्षा अशासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सह-शिक्षा के 30 -30 छात्राओं का परीक्षण किया गया। जिसमें शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सह-शिक्षा में अध्ययनरत् छात्राओं का सामाजिक समायोजन के प्राप्तांकों का माध्य 51.4 प्रमाप विचलन 4.50 प्राप्त हुआ। तथा अशासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सह-शिक्षा में अध्ययनरत् छात्राओं का सामाजिक समायोजन के प्राप्तांको का माध्य 51.13 प्रमाप विचलन 4.27 है। शासकीय एवं अशासकीय सह-शिक्षा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की छात्राओं के सामाजिक समायोजन के माध्य में अंतर है माध्यों के इस अंतर की सार्थकता हेतु ब्त् मूल्य की गणना की गई जो 0.04 प्राप्त हुआ। 58 िके लिए .05 स्तर पर ब्त् की सारणी मूल्य 2.00 है जो क्रांतिक अनुपात के गणना मूल्य से .04 से अधिक है। इस प्रकार दानों विद्यालयों में सामाजिक सामयोजन के प्राप्तांकों के माध्यों मे अंतर सार्थक नहीं है। अतः परिकल्पना भ्2 ‘‘शासकीय उच्चतर माध्यमिक सह-शिक्षा विद्यालय अशासकीय उच्चतर माध्यमिक सह-शिक्षा विद्यालय में अध्ययनरत् छात्राओं में सामाजिक समायोजन में कोई सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा।’’ स्वीकृत होती है।

 

परिकल्पना भ्3 - अशासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कन्या अशासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सह-शिक्षा में अध्ययनरत् छात्राओं की सामाजिक समायोजन में सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा।

 

सारणी क्रमांक 1.3

Nk=k;sa

la[;k

ek/;

izeki fopyu

CR ewY;

lkFkZd@

lkFkZd ugha

v'kkl- mPprj ek/;fed fo|ky; dU;k

30

54-36

3-78

0-05

-05 Lrj ij lkFkZd ugha

v'kkl- mPprj ek/;fed fo|ky; lg&f'k{kk

30

51-13

4-27

df = 58

 

व्याख्या:-

अशासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कन्या अशासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सह-शिक्षा में अध्ययनरत् छात्राओं में सामाजिक समायोजन के लिए 30-30 छात्राओं को लिया गया। जिसमें छात्राओं के समायोजन का माध्य उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कन्या का 5.36 प्रमाप विचलन 3.78 है तथा अशासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सह-शिक्षा में अध्ययनरत् छात्राओं का सामाजिक समायोजन का माध्य 51.13 प्रमाप विचलन 4.27 है। अशासकीय कन्या शाला एवं अशासकीय सह शिक्षा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की छात्राओं के सामाजिक सामयोजन के माध्य मे अन्तर है, माध्यों के इस अंतर की सार्थकता हेतु ब्त् मूल्य की गणना की गई। जो 0.05 प्राप्त हुआ 58 कष्किे लिए 0.05 स्तर पर ब्त् की सारणी मूल्य 2.00 है,जो क्रांतिक अनुपात के गणना मूल्य .05 से अधिक र्है। इस प्र्रकार दोनों विद्यालयों के सामाजिक सामयोजन के प्राप्तांकों के माध्यों में अंतर सार्थक नहीं है। अतः परिकल्पना भ्3 ‘‘अशासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कन्या अशासकीय उच्चतर माध्यमिक सह-शिक्षा विद्यालय में अध्ययनरत् छात्राओं की सामाजिक समायोजन में सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा।’’ स्वीकृत होती है।

 

निष्कर्ष:-

प्रस्तुत शोध की समस्या निम्न निष्कर्ष प्राप्त हुए हैः-

 

परिकल्पना भ्1 - ‘‘शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अशासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्ययनरत छात्राओं में सामाजिक समायोजन में कोई सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा।’’इस परिकल्पना की पुष्टि के लिए प्रदत्त आंकड़ो का विश्लेषण किया गया जिसमें आंकड़ों के विश्लेषण से ब्त् मूल्य 0.50 प्राप्त हुआ जो सार्थक नही पाया गया।

 

परिकल्पना भ्2 - शासकीय उच्चतर माध्यमिक सह-षिक्षा विद्यालय अशासकीय उच्चतर माध्यमिक सह-शिक्षा विद्यालय में अध्ययनरत् छात्राओं में सामाजिक समायोजन में कोई सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा। इस परिकल्पना की पुष्टि के लिए आंकड़ों के विश्लेषण से ब्त् मूल्य 0.04 प्राप्त हुआ जो कि हमारी परिकल्पना की पुष्टि हुई।

 

परिकल्पना भ्3 -‘‘अशासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कन्या अशासकीय उच्चतर माध्यमिक सह-शिक्षा विद्यालय में अध्ययनरत् छात्राओं की सामाजिक समायोजन में सार्थक अंतर नहीं पाया जायेगा।’’ इस परिकल्पना की पुष्टि के लिए आंकड़ों का विश्लेषण किया गया जिसमे परिकल्पना की पुष्टि हेतु ब्त् मूल्य 0.05 प्राप्त हुआ।

 

संदर्भ ग्रंथ सूची:-

1ण्   अस्थाना, विपिन (2012-13). शिक्षा और मनोविज्ञान में सांख्यिकी, अग्रवाल पब्लिकेशन्स, आगरा

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12ण्  इंटरनेशल जर्नल आॅफ पब्लिक मेन्टल हेल्थ एण्ड नर्सइस आई एस एस एन: 2394-4668 (पब्लिस्ड ज्वाथली बाय अजमे बायोसारंस (पी), लिमिटेट, सर्वासुमाना एशोसियेशन एण्ड सुघाराती निरिखा फाउनडेशन

 

 

Received on 05.06.2020            Modified on 14.07.2020

Accepted on 21.08.2020            © A&V Publications All right reserved

Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2020; 8(3):145-152.